नई चेतना - 7

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अमर पसीने से लथपथ हो चुका था । उसके कदम अब डगमगा रहे थे । हिम्मत जवाब दे रही थी । हरिया के जाने के बाद वह तुरंत ही उठ कर चल पड़ा था । वह जल्द से जल्द नारायण की झुग्गी तक पहुँच जाना चाहता था । शायद वहाँ उसे धनिया के बारे में कुछ पता चल जाए । इसी उम्मीद में अपनी धुन का पक्का अमर लगातार चलता रहा । दिनभर की अपनी यात्रा पूरी करके सूर्य भी अपने अस्ताचल की ओर गतिमान थे। अब वह किसी भी समय अपनी मंजिल पर पहुँच जानेवाले थे । लेकिन अमर