हवाईजहाज मेरे शहर की सीमा में पहुँच चुका था। सर्दियों में अंधेरा जल्दी घिर आता है। थोड़ी देर पहले नीले आसमान में प्रसरित सूर्यकनियों की स्वर्णिम रोशनी को स्याह अंधेरा अपनी आगोश में ले चुका था। अब मीलों तक नीचे पसरे शहर की बत्तियां तारों जैसी टिमटिमाती दिख रहीं थीं। मैं ऊपर उड़ रही थी और आसमान मानो मेरे कदमों तले बिछा हुआ था। मैं हमेशा से आसमान में उड़ते हुए गाना चाहती थी... 'आज मैं ऊपर... आसमां नीचे...' आज मेरा सपना सच हो रहा था... किन्तु मैं खुश क्यों नहीं...??बचपन से नीले आसमान को छू लेने