व्यथा कथा

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जब व्यथा की अति हो जाती है तो शब्द खुदबखुद लोप हो जाते हैं। आप अचंभित, शॉकड हो जायज़ एवं सार्थक शब्दों को ढूँढने..तलाशने की कवायद में निशब्द हो खड़े के खड़े रह जाते हैं। ज़रूरत के वक्त ना माँ..ना बाप...ना भाई..ना बहन..ना बीवी-बच्चे, कोई भी आपके साथ..आपको संबल देने को..सहारा देने को नहीं खड़ा होता। सब कुछ आपको खुद ही अपने दम पर भुक्ततना..झेलना एवं यहाँ तक कि अपनी ही नज़रों में खुद के द्वारा प्रताड़ित होना होता है।"क्या कहा?...दोस्त?"हुंह!...दोस्त...ये तथाकथित दोस्त सबसे पहले कन्नी काट..किनारा कर लेने की जुगत ढूँढने लगते हैं। आप एक तरह से सब कुछ