पुस्तक समीक्षा - 4

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समीक्षा हम सब दीमक हैं यशवंत कोठारी पिछले दिनों मैंने कुछ व्यंग्य उपन्यास पढ़े. तेज़ गर्मी ,लू के थपेड़ो के बीच लिखना संभव नहीं था सो कूलर की ठंडी हवा में पांच व्यंग्य उपन्यास पढ़ डाले. एक दीमक सबसे बाद में पढ़ा गया,लेकिन मुझे इस से बढिया शीर्षक नहीं मिला.जो अन्य उपन्यास पढ़े गए वे हैं-शरद जोशी का –मैं मैं और केवल मैं ,सुरेश कान्त का ब से बैंक ,हरी जोशी का घुसपैठिये ,गिरीश पंकज का माफिया . इसी बीच फे स्बूक पर कवि सम्मेलनों पर एक उपन्यास अंश देखा,अधिकांश कवि सम्मेलन हास्यास्पद रस के होते हैं