नई चेतना - 5

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अगले दिन सुबह अमर की नींद बड़ी देर से खुली। धुप ऊपर चढ़ आई थी । दीवार पर लगी घडी सुबह के नौ बजा रही थी । अमर अनमने ढंग से उठा । उसके चेहरे पर कोई स्फूर्ति कोई ताजगी नजर नहीं आ रही थी। बड़े सुस्त कदमों से चलता हुआ अमर बाथरूम में घुस गया । नित्यकर्म से फारिग हो नहाधोकर तैयार होते होते दस बज गए ।अभी वह तैयार होकर घर से निकलता कि सुशीलादेवी उसके कमरे में आती हुयी बोलीं ” चल बेटा ! कुछ नाश्ता कर ले।” अमर माँ से नजरें चुराते हुए बोला ” नहीं