ग़ज़ल, शेर - 4

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अब मुसलसल यादों में आता ही नहींलगता है मुझसे बेवफ़ाई मोड़ ली है।___Rajdeep Kotaरोना धो ना सब सहना सीख गएहम इश्क़ करना किसिसे सीख गए। मेरे दिल ए नाकाम तुम फ़िक्र ने करियोंहम इश्क़ का दूजा हुसुल सीख गए।__Rajdeep Kotaतिरे गांव तिरी गलियों का कोई हिसाब ही नहीं दोस्त।___Rajdeep Kotaवक्त आहिस्ता आहिस्ता हमें कई बातें सीखा जाता हैं।बिछोह नहीं, हमें उसका सबब आजकल सताता है।___Rajdeep Kotaमुहब्बत मैं मंज़िल नहीं मिलती हर किसीको,कुछ बीच में ही दम तोड़ देते हैं।___Rajdeep Kotaतुम्हें याद कर के ख़ुश तो सहीं पर बाद में दिनों परेशान रहते हैं।___Rajdeep Kotaमेरी बस्ती मैं हर रोज़ कोई मरता है।किसिको देह से हाथ