विवेक और 41 मिनिट.......... तमिल लेखक राजेश कुमार हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा संपादक रितु वर्मा अध्याय 17 विवेक सदमे में आया “पुष्पवासन..........” “वही............” “कहाँ से बोल रहे हो............?” “सॉरी विवेक............! ये सब तुम्हें बताने के लिए मेरे पास समय नहीं है........... अभी मेरे हाथ में एक पिस्टल है वह पिस्टल जज सुंदर पांडियन के लड़के गोकुलवासन की तरफ है ” विवेक घबराया “ये...... ये........... ये ........ क्यों मारोगे गोकुलवासन को ?” “पिता के कर्मों का दंड पुत्र को नहीं भुगतना है क्या ? मेरी क़ारूँणया के सिर के अंदर बंदूक की गोली थी ऐसा पेपर में