देस बिराना - 32 - अंतिम भाग

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देस बिराना किस्त बत्तीस तीन दिन तो हमने आपस में ढंग से बात भी नहीं की थी। सिर्फ चौंतीस दिन की सैक्सफुल और सक्सैसफुल लाइफ थी मेरी और मैं एक अनजान देश की अनजान राजधानी में पहुंचने के एक हफ्ते में ही सड़क पर आ गयी थी। इतना कहते ही मालविका मेरे गले से लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी है। उसका यह रोना इतना अचानक और ज़ोर का है कि मैं हक्का बक्का रह गया हूं। मुझे पहले तो समझ में ही नहीं आया कि अपनी कहानी सुनाते-सुनाते अचानक उसे क्या हो गया है। अभी तो भली चंगी