दो अजनबी और वो आवाज़ - 14

  • 4.5k
  • 2
  • 1.5k

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-14 न जाने कहाँ से किसी हवा के झोंके कि तरह रजिस्थान की वो ठंडी रात मेरे दिमाग को छूकर निकल जाती है और मेरे मन में यह विचार आता है कि वहाँ तो ठंड से बचने के लिए अलाव का सहारा मिल गया था। मगर यहाँ तो पेड़ों पर भी बर्फ विराज मान है। ऐसे में लकड़ी तो मिलने से रही। ऊपर से मेरे पास कोई गरम कपड़ा भी नहीं है। आज तो लगता है, यह मेरी ज़िंदगी का आखिर दिन ही है। अब कुछ नहीं हो सकता। फिर भी अभी मैंने पूरी तरह