बहीखाता - 22

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 22 साहित्य का अखाड़ा जिस बात से मैं बहुत डरती थी, उससे बचाव हो गया। मुझे लगता था कि चंदन साहब सुरजीत सिंह के तीन हज़ार के उधार को लेकर शायद कोई विवाद खड़ा करें, पर उन्होंने नहीं किया। सुरजीत सिंह पैसे लेने के लिए अपने एक मित्र के पास जर्मनी चला गया। सुरजीत ने अपने मित्र से वो पैसे लाकर चंदन साहब को लौटा दिए। मैंने राहत की सांस ली। अलका कभी-कभी ही घर आती थी, पर अब वह मुझसे कुछ नाराज़ रहने लगी थी। एकबार तो उसने टेलीफोन करके