आषाढ़ का फिर वही एक दिन - 3 - अंतिम भाग

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आषाढ़ का फिर वही एक दिन (कहानी: पंकज सुबीर) (3) फाइलें साइन होने के बाद भार्गव बाबू तुरंत बाहर आ गये हैं । अब वे अपनी कुसी पर वापस बैठ गये हैं, जहाँ अब कुछ भीड़ सी हो रही है । ‘आप सब लोग लंच के बाद आइये... अभी ज़रा साहब के साथ मीटिंग है ।’ भार्गव बाबू ने सबको हाथ से इशारा करते हुए कहा । ‘लंच से पहले कोई काम नहीं होगा, यहाँ भीड़ बढ़ाने से कोई मतलब नहीं है, साहब देखेंगे तो नाराज़ होंगे ।’ साहब की नाराज़ी से सब डरते हैं, फाइल तो उनने ही साइन