एकान्त नहीं अकेलापन

(13)
  • 6.5k
  • 1.1k

देखते ही देखते बादलों ने सूरज को अपनी आगोश में ले लिया। अंधेरा छा गया, बादलों की गर्जन सुनाई देने लगी। घनघोर काली घटा छा गयी।इधर एक घटा उसके मन के भीतर भी छा रही थी, अंधकार बढ़ता ही जा रहा था, अंतर्मन में विचारों के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे।कब... कहाँ... क्यों... और कैसे... इन प्रश्नों का कोई औचित्य नहीं रह गया था। सिर्फ औऱ सिर्फ एक ही प्रश्न सामने खड़ा था... अब आगे क्या?? बेहद प्यार करने वाला पति, निखिल...जिसकी चाहत और जरूरत दोनों ही वह थी, जो उस पर जान छिड़कता था। शादी के बाद कितनी खुश थी