आज पूरे दो साल बाद वह वापस उस घर की दहलीज पर लौटी थी।कभी इस घर में अरमानों को मन में बहाए दुल्हन के वेश में आई थी।दो साल, दो साल तक खुद को तलाशती सीमा आज फिर से वहीं थी।उसके हाथों से लगी फूलों की बेल अभी भी वहीं थी।सड़क पर कुछ फूल झड़े हुए थे।सीमा ने वह फूल उठाए और हथेली पर रख लिए।दो आँसू गाल पर ढुलक गए।"अरे मेमसाब आप!नमस्ते.. कैसे हो आप?""ठीक हूँ बद्री ।तुम कैसे हो और...."कुछ अधूरा छोड वह घर की तरफ देखने लगी।"मैं ठीक हूँ मेमसाब और साब भी।"आँखों को चुराते हुए वह