एक अजनबी शाम का अफसाना

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अजनबी…तुम जाने पहचाने से… लगते हो… ये बड़ी अजीब सी बात है...! समिधा गुनगुना रही थी. मन मे क्या था कौन जाने, पर रोमांच तो था ही. क्यों न हो! आज की खुशनुमा शाम का आगाज़ जो हो चला था. हाँ, ऐसा ही कुछ रूटीन बन गया था कि अकसर उसकी शामें थोडा रोमांटिक और कुछ रोमांचक हो जाती. समिधा ने बाथरूम से निकल कर पहले वॉल क्लॉक पर निगाह डाली. सर्द मौसम में यूं भी शामें जल्दी आ जाती हैं. चार बज कर बत्तीस मिनट हुए थे. बालों को शैम्पू करना जरूरी भी नहीं था, पर अगर किया