ग़ज़ल, शेर - २

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अब वोही पुराने ज़ख्म ताजियाना क्यों करें।इश्क़ के दरख़्त पे नया आशियाना क्यों करें।___Rajdeep Kotaजब ये लालिमा कालिमा मैं तब्दील हो जाएं।ऐसा न हो की फ़िर मिलना मुश्किल हो जाएं।___Rajdeep Kotaसाहब में भूखा हूं मुझे खाना नहींथोड़ा रहम ही मयस्सर करा दो।दिए की लौ डगमगाने लगी हैंमेरी दोस्त से मुलाक़ात पलभर करा दो।वोही आख़िरी जरिया हैं जीने का कोई उनकी बातों से यादों से मेरा जिहन तरबतर करा दो।___Rajdeep Kotaकुछ भी हो जाएंमुंह मत फेरना ईमान सेनिवाला ठुकरा ना मतमिलता हो जो एहसान सेआडंबरों के बादल छाए है चारो औरख़ुद को हर कोई बड़ा बता रहा है भगवान सेतुम मिलो न