बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 8 कालेज की ज़िन्दगी कालेज में लड़के-लड़कियाँ एकसाथ पढ़ते थे, आपस में खुलकर बातें भी करते थे। कुछ एक जोड़े भी बन रहे थे। वे हर समय साथ-साथ घूमते, फिल्में देखते, रेस्तरांओं में बैठते। परंतु मेरे ग्रुप की लड़कियाँ कुछ मेरे जैसी ही थीं। पिछड़ी-सी। हमारे ग्रुप की किसी भी लड़की में लड़के के साथ मित्रता बनाने की हिम्मत नहीं थी। हम लड़कों के सिर्फ़ सपने ही देखती थीं। हम किसी लड़के को दूर से देखकर ही उसके बारे में सोचने लगतीं। उसे लेकर सपने बुनती रहतीं। हम सभी एक साथ