एक अप्रैल की कहानी नीरजा द्विवेदी शीला एक अंतर्देशीय पत्र लेकर विचारमग्न खड़ी थीं. उनके पति ने धोखे से बेटी के मंगेतर का पत्र खोल दिया था और अपराध बोध से ग्रस्त होकर झिझकते हुए बोले थे— “मैं भूल गया था कि अब बेटी की शादी तय हो गई है तो उसके लिये भी पत्र आ सकता है. मैंने अपना पत्र समझकर बिना देखे हुए पत्र खोल दिया. मैंने पत्र पढ़ा नहीं है”—और सकुचाते हुए पत्र पुत्री को देने के लिये शीला के हाथ में थमा दिया था. पापा के दृष्टि से ओझल होते ही नीरजा ने शर्माते हुए मम्मी