पिछले सप्ताह अपने मुखपुस्तिका (फेसबुक) के मित्र ओम प्रकाश राय यायावर का उपन्यास काशी टेल पढ़ा। इस किताब को पढ़ने की काफी दिनों से ईच्छा रहने के बावजूद किन्ही न किन्ही कारणों से यह पढ़ने से छूट जा रही थी। हालॉकि ओम प्रकाश जी ने भी इसके लिये एक बार उलाहना दे डाला, सो अबकी बार किताब उठाई तो पूरा पढ़ने के बाद ही दूसरे काम हाथ मे लिया। फिर किताब के बारे मे सोचते हुये लिखने मे देर हो गई। बहरहाल आज इस काम को भी पूरा करने का मन मिजाज बना के बैठा हूँ। ओम प्रकाश राय बिहार