एक अदद टॉयलेट बाथरूम

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हम दो जन थे।फिर एक छोटी सी टीन्डसी आ गई।रिश्तेदारी इतनी तल्ख हो गई थी कि न किसी के आना न जाना।बेटी आ गई थी दिन भर मुहल्ले में मां को डुलाए रहती।दिन छोटे होते और रातें लंबी।बेटी सो रहती तब हम एक कंबल में स्निग्ध प्रेम में लिपटे रतजगा किये पड़े रहते।प्रेम जिसमें से कामुकता का अंत तिरोहित हो चुका था।प्रेम जिसमें इच्छा कामना में बदल गई थी।वास्तविकता के झीने आवरण तले उष्ण प्रेम की गरमाहट थी और हल्की फुल्की छेड़छाड़ भरी चूमा चाटी।बेटी दो साल की हो गई थी।दीदी के घर जाना नहीं हुआ था।दीदी से बिटिया के