बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 4 अंदर की दुनिया मेरी हालत अजीब-सी रहने लगी। मैं खोयी खोयी घूमने लगी। यद्यपि मैं पूरी तरह नहीं जानती थी कि मेरे साथ क्या हुआ, पर इतना अवश्य पता था कि कोई गन्दी बात हुई थी। चूचो के मामा ने बहुत गलत हरकत की थी मेरे संग। न किसी को बताने योग्य थी और न कुछ और करने लायक। एक अजीब-सा डर, नफ़रत, अलगाव मेरे अंदर घर करने लगा। मैं घर में उखड़ी-उखड़ी रहती, पर कोई मेरी ओर देखता ही नहीं था, मानो किसी को मेरी चिंता ही नहीं थी।