एक जिंदगी - दो चाहतें - 39

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-39 सबके दिल इस कहानी को सुनकर भारी हो गये थे। बहुत देर तक फिर सब मिलकर इधर-उधर की हल्की-फुल्की बातें करके अपना मन बहलाने की कोशिश करते रहे। रात के नौ बज रहे थे। सब लोग बहुत थके हुए थे, खाना खाने जाने का किसी का भी मन नहीं कर रहा था। अनील और शमशेर मेस में जाकर दो थालियों में सबके लिए सब्जी रोटी ले आए। सबने उन्हीं थालियों में से थोड़ा बहुत खाया। जिनकी रात की ड्यूटी थी वे सब ड्यूटी पर चले गये। बाकी लोग अपने-अपने पलंगों पर सोने