एक जिंदगी - दो चाहतें - 38

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-38 अपने रूम में पहुँचकर परम ने सबसे पहले जूूते खोले। दिनभर जूते मोजों में बंधे पैर गरमी और पसीने से भीग गये थे। शाम के पाँच बजे थे। जोरों की भूख लग रही थी। परम ने अलमारी से अपने कपड़े लिये और वॉशरूम में शॉवर के नीचे जाकर खड़ा हो गया। सिर पर ठंडे पानी की फुहार पड़ते ही दिमाग थोड़ा ठिकाने हुआ ऐसे एनकाउंटरों के बाद परम का मन हमेशा बहुत विचलित हो जाता था। किसी की जान लेना... जानता था कि यह उसका फर्ज है। वह कोई पाप नहीं कर