जब नियति, परिस्थिति या फिर समाज अथवा परिवार द्वारा तय किए गए पति पत्नी के रिश्तों में किसी ना किसी कारणवश परेशानियां, दिक्कतें या दुश्वारियां पैदा हो अपना सर उठाने लगती हैं, तब उन रिश्तों में किसी ना किसी तीसरे का किसी ना किसी रूप में आगमन होता है भले हो वो सखा, मित्र, प्रेमी अथवा शुभचिंतक का रूप ही क्यों ना हो।इस तरह के रिश्तों का जादुई तिलिस्म कुछ ऐसा होता है कि इन्हें कुछ समय के लिए या जीवन के सही ढंग से व्यवस्थित हो ढर्रे पर आने के बाद परिस्तिथिवश भुलाया तो जा सकता है लेकिन जड़