विष-बीज

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विष-बीज सुधा ओम ढींगरा देखिये जनाब! मुझे लिखने-विखने का कोई शऊर नहीं। लेखन प्रतिभा से कोसों दूर हूँ। जो भी कहना चाहता हूँ, लिख कर नहीं कह सकता। वाचक हूँ। बस बोल कर कहता हूँ, अक्सर बहुत बोल जाता हूँ। प्रकृति मेरी मित्र है। हवा से, तितलियों से, पक्षियों से, पत्तों से, फूलों से, चाँद-तारों से बातें करता हूँ। वे चुपचाप मुझे सुनते हैं। बड़े अच्छे श्रोता हैं। कभी -कभी हवा लहराकर, तितलियाँ फरफराकर, पंछी चहचहाकर, पत्ते सरसराकर, फूल खिलकर, चाँद और तारे चमककर मेरा साथ देते हैं। कई बार जी करता है तो अपने-आप से बातें करता हूँ। कुछ