नाख़ून - 2

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लेकिन नहीं, माँ को तो घर में बहू चाहिए थी। बे–मन शादी के लिए हाँ कर दी थी। फिर शादी में खुद की किसी भी तरह की पसंद को थौपा भी नहीं था माँ–बाप पर। उनकी पसंद का लत्ता–कपड़ा, उनकी पसंद अनुसार खर्च चलाना, उनकी ही पसंद की हुई लड़की से शादीय सब कुछ तो उनकी ही पसंद का था।कहीं ऐसा तो नहीं कि माँ ने पास–पड़ौस में जो अच्छे दहेज की उम्मीद जताई थी..... नहीं–नहीं..... ऐसा नहीं होगा..... अरे हो भी सकता है..... आख़िर इंसान का लालची मन कुछ भी करवा सकता है।दिमाग पर बोझ लिए–लिए ही न जाने