एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-34 कमरे में पैर रखते ही तनु के दिल में एक हौल बहुत गहरे उतर गया। खाली घर, खाली कमरा, खाली पलंग। जिस कमरे में वह पिछले दो महीनों से परम के साथ सोती आयी थी आज वहाँ खाली सन्नाटा दीवारों पर पसरा हुआ था कटे पेड़ सी वह पलंग पर गिर पड़ी। पिछले दो महीने से तनु ने तकिया नहीं लिया था। परम रात भर उसके बालों को सहलाता अपनी बांह पर सुलाता था। आज कहाँ था उसका तकिया? तनु पलंग पर टिक कर बैठ गयी। आँखों से आंसुओं की धाराएं बह