विक्टर और पाढ़ा

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विक्टर और पाढ़ा नीरजा द्विवेदी यह कहानी सन 58 की है. उस समय मेरे पापा गोरखपुर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे. गोरखपुर में डी.आई.जी. रेंज का नया पद सृजित हुआ था और उनके लिये आवास का प्रबंध होने तक जिस आवास में हम रहते थे उसके आधे भाग में डी.आई.जी. साहब के रहने का प्रबंध किया गया. आवास में सामने दो कमरे थे जो ड्राइंग रूम बनाये गये. इसके बाद एक गैलरी थी. गैलरी के दोनों ओर तीन-तीन कमरे थे. अंदर बरामदा था और रसोईघर था. अंग्रेज़ों के समय का एक रसोईघर बड़े से आंगन की बाउंड्री वाल के बाहर