जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (1) फ़ोन पर दूर के रिश्ते के देवर की आवाज़ है, "भाभीजी ! इस बार आपको हमारे शहर आना ही होगा. कब से टाल रही हैं. " "क्या करूँ कुछ ना कुछ व्यस्त्तायें चलती ही रह्ती हैं. " "आप मेरी बात सुनेगी तो उछल पडेंगी, दौड़ती हुई हमारे यहाँ चली आयेंगी. " "ऐसी क्या बात हो गई ?" "आपका मैंने अपनी पार्टी के मिनिस्टर के साथ लंच फ़िक्स करवा दिया है. एक जर्नलिस्ट को और क्या चाहिये ?---कॉन्टेक्टस. यह तो एक सुपर डुपर कॉन्टेक्ट है. " फ़ोन उसके हाथ से छूटते छूटते बचा, "भला मैं मिनिस्टर के