देस बिराना - 12

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देस बिराना किस्त बारह सारी तैयारियां हो गयी हैं। सामान से भी मुक्ति पा ली है। तनावों से भी। बेशक एक दूसरे किस्म का, अनिश्चितता का हलका-सा दबाव है। पता नहीं, आगे वाली दुनिया कैसी मिले। जो कुछ पीछे छूट रहा है, अच्छा भी, बुरा भी, उससे अब किसी भी तरह का मोह महसूस करने का मतलब नहीं है। पूरे होशो-हवास में सब कुछ छोड़ रहा हूं। लेकिन जो कुछ पाने जा रहा हूं, वह कैसे और कितना मिलेगा, या मिलेगा भी या नहीं, इसी की हलकी-सी आशंका है। उम्मीद भी और वायदा भी। वैसे तो इतना कुछ सह चुका