बेघर सच

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बेघर सच सुधा ओम ढींगरा 'सच तो मैं जानता हूँ। वह सच मैं तुम से उगलवाना चाहता हूँ जिसे तुम मुझ से छिपा रही हो।' संजय बड़ी कठोरता से बोला। बचपन से उसकी आदत है जब भी कोई ऊँचा या सख्त बोलता है, वह पलटवार नहीं कर पाती, सिमट जाती है अपने में.....सामने वाले की कठोर धरती पर खड़ी नहीं रह सकती, उसके पाँव ज़ख़्मी हो जाते हैं। धसने लगती है अपने अन्दर, गहरे भीतर, भावनाओं के कुशन का सहारा लेने। तुम क्या जानो....सच क्या है? किनारे पर खड़े हो कर सच नहीं जाना जाता, गहरे में डुबकी लगानी पड़ती