फिर थोडे ही दिनो मे मालती अपने मिलनसार स्वभाव और पढाई करवाने की अपनी बहेतरिन और अनोखी रीत से वो यूनिवर्सिटी के स्टाफ और स्टुडण्ट के साथ घुलमिल गई । ईस दौरान जगदीशभाई और मालती की दोस्ती भी काफी मजबूत हो चुकी थी । एक दिन मालती अपने क्लासरूम में हिस्ट्री की पाठ ले रही थी। तभी उसने देखा की पहेली बेंच पे बैठी हुई किशनसिंहजी की बहेन अर्चना बैठी बैठी रो रही थी। मालती मेडमने पूछा क्या हुआ अर्चना ? तुम क्यू रो रही हो । क्या बात है ? तभी उसकी बगल मैं बैठी पल्लवी बोली मैडम