राजनीति

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शाम ढलने लगी थी .आधा नवम्बर बीत चुका था .सुहानी हवाओं में बर्फ की ठंडक घुलने लगी थी .शॉल ओढ़कर साहिल खिड़की से बाहर के नज़ारों को देखने लगा .डैडी के साथ कितनी ही बार उनके इस संसदीय क्षेत्र से सांसद रहते हुए साहिल ने इसी सरकारी डाकबंगले की खिड़की से रोमांचित होकर ये नज़ारे देखे थे .दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली और उस पर संध्या की श्यामल चुनरी की छाया . साहिल की आँखों में एक सूनापन थोड़ी नमी के साथ उतर आया .ऐसा सूनापन साहिल ने पहली बार अपने डैडी की आँखों में तब देखा था जब