असरार..

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1). आरज़ू ...हूँ मदहोश सरहोश आज बेहोंश हूँ कहीं हूँ खामोश पर मन्द ही मन्द कुछ कहती हूँ अभीसोचती हूँ लौट आऊँ ,लौट आऊँ तेरे करीब वहींवहीं जहां तू रहता है बसता है मेरा प्यार अब भी मुझमे कहींहम मिलकर भी ना मिल सके कभी आरज़ू है तुझे पाने की बची अब भी मुझमे कहीं चाहत है डूब जाऊं तुझमें इस कदर की दुनिया देखे मेरा वजूद अब तुझसे हीहूँ मदहोश सरहोश आज बेहोंश हूँ कहीं,,हर याद से तेरी याद जुड़ी हैडूबी हूँ तुझमें दुनिया से परे कहींढूंढती मेरी नज़र हर वक़्त तुझे हीपर एक गम है कि तू इस वक़्त नही है