ख़त: डिअर माँ, ना जाने कितने आँसुओं को अपने दामन में समेटकर माँ घर में चुपचाप रहा करती है, सबको अपनेपन का प्यार देकर वह ख़ुद को कितना अकेला मानती होगी जब ज़रा सी ग़लती पर पापा, भाई, बहन और तो और दादी भी क़तई कुछ भी कहने को नहीं चूकतीं।माँ! मुझे नहीं मालूम लेकिन जब कभी घर पर दबे पांव आता हूँ तो तुमको अकेले में रोता हुआ पाता हूँ, एक दिन याद है मुझे माँ! पापा के कुछ कहने पर आप पूरा दिन रोईं थीं जब मैंने पूछा तो आपने बोला कि बेटा आपके नाना की बहुत याद