ठहरी हुई धूप

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ठहरी हुई धूप कैलाश बनवासी हमेशा की तरह मम्मी ने ही जगाया था—ए-ए–s s s ई सीटू ! उठो ! ऊँ s s s अ.... वह नींद में कुनमुनाया. --ओए उट्ठ ! सकूल नी जाणा तैनूं ? आँ.. अ... ? सीटू हड़बड़ाकर उठ बैठा. आँखों में नींद की हलकी पहचान अब भी थी. सुबह का हल्का सफ़ेद उजास भीतर सरक आया था. स्कूल? वह सोचने लगा. ठीक. आज ही तो जाना है. कल वह मम्मी से बार-बार पूछता रहा था, मम्मी... कल स्कूल खुलेगा ? तो मम्मी ने कहा था, हाँ, आज कर्फ्यू हट गया है, कल से खुल जायेंगे.