एक जिंदगी - दो चाहतें - 27

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-27 परम वहाँ से निकलकर तनु के ऑफिस की ओर चल पडा। आज वह बहुत खुश था। चाचा-चाची ने उसे सही मान लिया था। उसे और तनु को स्वीकार कर लिया। कितना अच्छा लगता है जब आपकी खुशी में आपका परिवार भी साथ हो। आपके निर्णय पर घरवालों की स्वीकृति की मुहर लगाी हो। परम का चेहरा खुशी से दमक रहा था। बस अब उसके माता-पिता भी मान जायें। जैसे ही परम ने तनु के केबिन में पैर रखा उसके चेहरे की खुशी देखकर तनु की जान में जान आयी। इतनी देर से