जादू टूटता है

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जादू टूटता है कैलाश बनवासी ‘‘सर, क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?’’ प्रिंसिपल ने स्कूल के फंड से पैसे बैंक जाकर निकलवाने के लिए मुझे अपने कक्ष में बुलवाया था। प्राचार्य चेक साइन कर चुके थे। तभी कमरे का परदा जरा-सा हटाकर भीतर आने की इजाजत चाहता वह खड़ा था। प्राचार्य ने इशारे से उसे आने की अनुमति दी। वह भीतर आ गया, आभर में केवल मुस्कुराते ही नहीं, हाथ जोड़े हुए। ‘‘ हाँ, कहो... ?’’ मैं भी समझ रहा था, शायद अनाथ आश्रम के लिए चंदा मांगने आया हो। स्कूल में अक्सर ऐसे लोग आते रहते हैं सहयोग