देस बिराना किस्त छह लौट रहा हूं वापिस। एक बार फिर घर छूट रहा है..। अगर मुझे ज़रा-सा भी आइडिया होता कि मेरे यहां आने के पांच-सात दिन के भीतर ही ऐसे हालात पैदा कर दिये जायेंगे कि मैं न इधर का रहूं और न उधर का तो मैं आता ही नहीं। यहां तो अजीब तमाशा खड़ा कर दिया है दारजी ने। कम से कम इतना तो देख लेते कि मैं इतने बरसों के बाद घर वापिस आया हूं। मेरी भी कुछ आधी-अधूरी इच्छायें रही होंगी, मैं घर नाम की जगह से जुड़ाव महसूस करना चाहता होऊंगा। चौदह बरसों में