देस बिराना किस्त चार आगे कोतवाली के पास ही नंदू का होटल है। चलो, एक शरारत ही सही। अच्छी चाय की तलब भी लगी हुई है। नंदू के हेटल में ही चाय पी जाये। एक ग्राहक के रूप में। परिचय उसे बाद में दूंगा। वैसे भी वह मुझे इस तरह से पहचानने से रहा। नंदू काउंटर पर ही बैठा है। चेहरे पर रौनक है और संतुष्ट जीवन का भाव भी। मेरी ही उम्र का है लेकिन जैसे बरसों से इसी तरह धंधे करने वाले लोगों के चेहरे पर एक तरह का घिसी हुई रकम वाला भाव आ जाता है, उसके