शादी के बाद ससुराल में सबकुछ था, सिवाय अपनी इच्छा के. जो चाहो खाओ, पहनो, जहां चाहो जाओ, मिलो-जुलो बस अपने विचार पेश मत करो. बड़ी बाईसाब यानि गौरी की सास जो कहें उसे अन्तिम सच मानो. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो आप अपनी स्थिति कमज़ोर कर सकते हैं. गौरी की भी तमाम मुद्दों पर उनसे असहमति होती थी, जिसे वो ज़ाहिर भी कर देती थी, और इसीलिये बड़ी बाईसाब ने उसे ’मुंहफट’ के विशेषण से नवाज़ा था. धीरे-धीरे गौरी ने खुद ही समझौता कर लिया. अकेली कब तक लड़े? पति भी गाहे बगाहे समझा देते थे कि चुप रहा