संस्कार

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उनकी धीर गम्भीर वाणी से सभी प्रभावित थे । उन्होंने भारतीय पुराणिक कथाओं का अच्छा अध्ययन किया था, साथ ही उन कथाओं का मर्म और उनकी अलग तरह की वे व्याख्या किया करते जिससे जीवन को ज्यादा बेहतर ढंग से समझने का मौका मिलता । वे अक्सर शाम को मंदिर के बाहर लगी बेंच पर बैठ जाते । कुछ लोग उनके इर्द गिर्द हो जाते । उन्हें ये महत्वाकांक्षा कभी नहीं रही कि लोग उन्हें ज्ञानी समझे ,उन्हें मान सम्मान दें, वे तो भगवतसत्ता के रहस्य और उनकी महिमा के बारे के मंथन करते और भावभूमि से आनंद में डूब