एक जिंदगी - दो चाहतें - 20

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-20 सुबह के साढ़े सात बज गये थे जब तनु की नींद खुली। उसने देखा वह वैसे ही परम के सीने पर सिर रखकर सो रही है। तनु उठकर बैठ गयी। परम उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। 'आप सारी रात ऐसे ही लेटे रहे बाप रे। आपका हाथ सुन पड़ गया होगा। आपने मुझे तकिये पर क्यूँ नहीं सुला दिया। तनु झेंप कर बोली 'मैं भी तो ऐसे घोड़े बेचकर सो जाती हूँ कि बस कुछ होश ही नहीं रहता। 'ऐ पगली! तो क्या हुआ। तुझे चैन से सेाते देखकर मेरे दिल को