(१) जब रक्षक भक्षक बन जाए तुम्हें चाहिए क्या आजादी , सबपे रोब जमाने की , यदि कोई तुझपे तन जाए , तो क्या बन्दुक चलाने की ? ये शोर शराबा कैसा है ,क्या प्रस्तुति अभिव्यक्ति की ? या अवचेतन में चाह सुप्त है , संपुजन अति शक्ति की . लोकतंत्र ने माना तुझको , कितने हीं अधिकार दिए , तुम यदा कदा करते मनमानी , सब हमने स्वीकार किए . हाँ माना की लोकतंत्र की , तुमपे है प्राचीर टिकी , तेरे चौड़े सीने पे हीं तो , भारत की दीवार टिकी . हाँ ये ज्ञात भी हमको है ,