सत्या - 8

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सत्या 8 दारू के नशे में धुत्त लोगों का एक झुँड ढोल बजाकर नाचता हुआ चला जा रहा था. सबसे आगे रमेश थिरक रहा था. बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में वह नारा बुलंद करता था, “सत्या बाबू की जै.” जवाब में उसके साथ चल रही पूरी भीड़ एक स्वर में दोहराती थी, “सत्या बाबू की जै.” रमेश, “सत्या बाबू की जै.” भीड़, “सत्या बाबू की जै.” रमेश, “डिडिंग-डिडिंग, डिडिंग-डिडिंग...” शोर सुनकर सत्या कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर बरामदे में निकल आया. देखते ही लोगों ने उसको घेर लिया और साथ में नचाने का प्रयास करने लगे. सत्या अपने को छुड़ाने