मैं यहाँ पे तीन कविताओं को प्रस्तुत कर रहा हूँ (1) प्रभु तू मेरे बस की बात नहीं हैं (2) जग में डग का डगमग होना ,जग से है अवकाश नहीं और (3) मैंने भी देखा एक कुत्ता. (1) प्रभु तू मेरे बस की बात नहीं हैं प्रातः काल उठ उठ कर नित दिन,धरूँ ध्यान स्वांसों पर प्रति दिन,अटल रहूँ अभ्यास करूँ मैं,प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,तू मेरे बस की बात नहीं है। ध्यान उतर कर जब आता है,किसक्षण मन ये खो जाता है,होश ध्यान में पकड़ूँ कैसे?प्रभु ,इतनी औकात नहीं है,तू मेरे बस की बात नहीं है।