‘बराबाद’ .... नहीं आबाद

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‘‘ क्या नाम लेती हो तुम अपने गांव का... हां याद आया गन्नौर न। सुनो आज गन्नौर में दो प्यार करने वालांे ने जान दे दी ट्रेन से कटकर।’’ ‘‘हे मेरे मालिक क्या खबर सुणाई सबेरे- सबेरे म्हारे मायके की। जी भाग गए होंगे दोनों। न दी होगी मंजूरी घरवालों ने। आह भरकर सुनीता काम में लग गई । सात बज चुके थे और अभी चार घरों का काम बाकी था। सवा सात से पहले उसे हर हालत में डिम्पल के घर पहुंचना था क्योंकि स्कूल के लिए निकलने से पहले उसका माई से बर्तन मंजवाना जरूरी है। यों तो डिम्पल का पति दस बजे दुकान के लिए निकलता है पर माई से काम करवाना उसकी शान के खिलाफ है। पचास साल की उम्र की सुनीता अपने से दस-पंद्रह साल छोटी मालकिनों को भाभी शब्द से सम्बोधित करती है पर गुस्से में कभी-कभी भाभी डिम्पल को डिम्पल मैडम कहती है।