प्रायश्चित

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हनी ने एयरपोर्ट पर भारी मन से अपनी मौम और डैड से हाथ हिला कर विदा ली थी। उनके एयरपोर्ट के भीतर जाते ही उसके मन का सारा संताप उसकी आँखों की राह अश्रुधारा के रूप में बह निकला था। बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को संयत कर वह एयरपोर्ट से बाहर आई थी। वहाँ से घर लौटते वक्त वह खिन्न मन सोच रही थी, 'उफ, वक्त कितना अनिश्चित होता है। कब किस करवट पलट किसी को भी अबूझ, अनजानी डगर पर धकेल दे कोई नहीं जानता। आज से तीन महीने पहले आँखों मे आगत छुट्टियों के असंख्य खुशनुमा