उन दिनों लोगों को अखाडें का बड़ा शौक था। शहर में जगह जगह अखाड़े खुले हुए थे जहां उस्ताद लोग तरह तरह के दाव व कुश्तियां सिखाया करते थे। शहर के प्रमुख चौराहे पर स्थित पान की दुकान पर एक पहलवान बैठा करता था। वह दुकानदार से थोड़ी थोड़ी देर में पण मांगकर अनेक पान चबाया करता व जब दुकानदार उससे पैसे मांगता तो वह हिसाब में उधार लिखने को कह देता। दुकानदार की हिम्मत नहीं थी कि उससे हिसाब चूकता करने का कहे। न ही पहलवान कभी पैसे देने की तोहमत उठाता।