एक जिंदगी - दो चाहतें - 6

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थोड़ा सा नीचे जाते ही सामने का दृश्य देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गये। पहाड़ी पर थोड़े से समतल स्थान के बाद थोड़ी तीखी ढलान थी वहाँ झाडिय़ों में जगह-जगह इंसानी लाशें अटकी हुई थीं। क्षण भर को उन सबके फौलादी सीने भी दहल गये। बहुत ही विभत्स दृश्य था। झाडिय़ों में अटककर उनके कपड़े फट गये थे। कई दिन से पहाड़ों पर से रगड़ खाकर नीचे बहते और लगातार बरसते पानी में रहने से लाशों के चेहरे क्षत-विक्षत हो गये थे। पहचान में नहीं आ रहा था कि कौन औरत है और कौन आदमी। साँस लेना दुभर था। बहुत रोकने पर भी रजनीश को उल्टी हो गयी।