कर्तार जी को दिल्ली जाना था। आतिश जी ने उनका रिज़र्वेशन करा दिया था। कर्तार जी एजेंसी के कामों से अक्सर दिल्ली आया-जाया करते थे। उनकी यात्रएँ इतनी अचानक और हड़बड़ी भरी होती थीं कि रिज़र्वेशन करा पाना मुश्किल होता था। ज़्यादातर उन्हें सामान्य डिब्बे में ही यात्र करनी पड़ती थी। सामान्य डिब्बे आमतौर पर भीड़ से खचाखच भरे होते थे। तिल रखने की भी जगह नहीं होती थी। कर्तार जी को प्रायः उसी भीड़ में यात्र करनी पड़ती। कर्तार जी छः फिट के हट्टे-कट्टे आदमी थे। किसी को कसकर डपट दें तो वह ऐसे ही सीट छोड़कर खड़ा हो जाए।